कविता। ग़ज़ल। अपनी बात।

गुरुवार, 24 जून 2010

मेरी दुनिया में-1

कभी फुर्सत मिले तो आना मेरी दुनिया में।
मेरी खातिर भी मुस्कुराना मेरी दुनिया में॥
तुम्हें हम याद कभी भूल कर नहीं आए।
फिर भी चर्चा है मगर तेरा मेरी दुनिया में॥
मेरी यादों में एक लम्हा अब भी ऐसा है।
गैरमुमकिन है भुला पाना मेरी दुनिया में॥
वो बीते लम्हे हमें अब भी याद आते हैं।
है सितारों का टिमटिमाना मेरी दुनिया में॥
बीते सावन में घटा झूम के जो आई थी ।
अब के सावन में है बरसाना मेरी दुनिया में॥
सवाल उठता है रह-रह वजूद पर मेरे।
जवाब अब भी पुराना है मेरी दुनिया में॥

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